अनुसरण करें

Tuesday 7 April 2020

खोखली पंचायत ( लघुकथा )



खोखली पंचायत ( लघुकथा ) 



"अरे ए होरी!"
"तनिक एक मस्त चाय तो बना!"
"ससुर ई मच्छर!"
"रातभर कछुआछाप जलाये पर भी कान में धुरखेल फाने रहे।"
परमपूजनीय मच्छरों को कोसते हुए लल्लन विश्वकर्मा हिंदी दैनिक पर अपनी सरसरी नज़र दौड़ाते हैं।

"मिर्ज़ापुर में बस खड्डे में पलटने से दर्जनभर घायल!"
"चोरी के संदेह में पीट-पीटकर मार डाला!"
"माननीय सांसद जी ने क़स्बे के टाउनहाल में युवाओं का उत्साह बढ़ाते हुए रेशम की फित्ती काटी!"
"शहरभर में आवारा कुत्तों का आतंक!"
"लहसुन की पत्ती से होगा कैंसर का इलाज!"
"शुक्र पर घर बनायेंगे हम!"
"सरकार की विकास नीतियों का, किसानों और मज़दूरों ने किया जमकर विरोध!"
"आम नागरिक अब कर सकेंगे शौचाल से बिजली पैदा!"

"का दिन आ गया है!"
"जहाँ देखो वहीं बवाल!"
"का होगा ई देश का!"
कहते हुए लल्लन विश्वकर्मा अपनी छेदनुमा बनियान में अपनी उँगली घुसेड़कर अपनी पीठ ख़ुजलाने का भरसक प्रयास करते हैं।

"अरे!"
"तोरा चाय बना कि नहीं।"
"बता नहीं तो चलें।"
"इहाँ हम ठंड से कुल्फ़ी हुए जा रहे हैं!"
"औरे ई ससुर, पता नहीं बीरबल की कउन-सी खिचड़ी पका रहा है।"

कहते हुए लल्लन विश्वकर्मा होरी पर झल्लाते हैं।

"अरे का हुआ!"
"काहे फ़ोकट में तेनुआ रहे हैं लल्लन जी!"
सामने से आते हुए भोला तिवारी, लल्लन विश्वकर्मा की तनिक चुटकी लेते हैं।

"औरे का होगा।"
"रातभर ससुर मच्छरों के अनशन से तनिक सो भी नहीं पाये!"
"औरो ई ससुर होरी!'
"घंटाभर से चाय ही छान रहा है।"

"अरे!"
"इहाँ तुम चाय के लिये बवाल काटे पड़े हो उधर लख़नऊ और दिल्ली में आग लगी जा रही है!"

समाचार चैनलों के सेकेंडहैंड न्यूज़ का, थर्डहैंड फ़ास्टबीट ख़बरों का प्रसारण करते हुए भोला तिवारी।

"अच्छा एक बात बताईए तिवारी जी!"
"का ई ससुर एन.आर.सी औरे सी.ए.ए. वाज़िब है ?"
"या फिर ऐसे ही।"
कहते हुए लल्लन विश्वकर्मा अपने ज्वलंत प्रश्नों का पासा भोला तिवारी के समक्ष फेंकते हैं।

"अरे!"
"काहे नहीं वाज़िब है!"
"सत्तर बरस से देश बर्बाद रहा।"
"अब सुधरे की बारी आई तो ई विपक्ष ससुर।" 
"झूठे बवाल काटे पड़ा है।"
"सरकार ने इतने अच्छे-अच्छे काम किये हैं तब भी विपक्ष को उनमें खोट ही दिखता है।"

कहते हुए भोला तिवारी अपने पक्ष को मज़बूती के साथ लल्लन विश्वकर्मा के समक्ष रखते हैं।

"क्यों ?"
"अरे, सत्तर बरस में हम चाँद पर पहुँच गये थे!"
"हमारी इकोनॉमी विदेशों में का टॉमफूस धूम मचाये पड़ा था तब आपको नहीं दिखा।"
"सत्तर बरस में इहाँ कितने ही शोध संस्थान खुले, हॉस्पिटल बने और तो और बाँधों का निर्माण हुआ।"
"का ऊ सब ख़ोखला विकास था!"

सर्दी के कारण बहती हुई अपनी अविरल नाक को अपने शरीर पर लिपटे हुए शॉल से पौंछते हुए लल्लन विश्वकर्मा ने अपनी सरकार का मोर्चा संभाला।

"औरे जो सत्तर बरसों में धर्म की क्षति हुई!"
"उसका क्या!"

भोला तिवारी बहस के बीच में धर्म का डंडा फँसाते हुए लल्लन विश्वकर्मा के समक्ष अपने धार्मिक पक्ष को दो-टूक शब्दों में रखते नज़र आये।

तभी गली से निकलने वाले एम्बुलेंस की तीव्र ध्वनि चाय की दुकान पर खड़े बकबकिये महानुभावों के कानों में पड़ी।

भौंचक्का होते हुए भोला तिवारी,
"अरे होरी!"
"ई हमारे गली में एम्बुलेंस!"
"कौन बीमार हो गया है सुबह-सुबह?"

"अरे!"
"का बात करते हो तिवारी बाबू!"
"आपको नहीं पता?"
"उहे रामनाथ मास्टर का लौंडवा रहा!"
"कल रात उसने फाँसी लगा लिया।"
"मोहल्ले में चर्चा रहा कि सात बरस से उहे दिल्ली में कलेक्टर की तैयारी कर रहा था। सफल न हुआ तो अवसादग्रस्त होकर ससुर फाँसी लगा लिया।"
"बताईए!"
"अब बूढ़े मास्टर जी अपने ज़वान लड़के की लाश स्वयं उठा रहे हैं!"
"लो बाबूजी!"
"तुम्हरी चाय बन गई।"

कहते हुए होरी चायवाला, लल्लन विश्वकर्मा और भोला तिवारी की ओर चाय का कुल्हड़ बढ़ाता है, और दोनों महानुभाव एक-दूसरे की तरफ़ मित्रताभरी नज़रों से देखते हैं!                                            
   
'एकलव्य' 



20 comments:

  1. वाह! ध्रुवजी। कमाल की लघुकथा। लोकभाषा की अद्भुत चाशनी मि मिठास में लिपटे संवादों ने समकालीन समाज के कितने कड़वे सच को उगल दिया। लाज़वाब। आगे भी आपकी लेखनी लल्लन विश्वकर्मा की बहती हुई अविरल नाक को चुनौती देती रहे, माँ सरस्वती से यही कामना है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीय विश्वमोहन  जी आपका बहुत-बहुत आभार। सादर 

      Delete
  2. वाह!ध्रुव जी , बेहतरीन ! लोकभाषा का इस्तेमाल कथा को रोचकता प्रदान करता है । सुंदर व सटीक ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीया  शुभा  जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर  

      Delete
  3. अरे वाह!😀😀
    आदरणीय सर सादर प्रणाम 🙏
    कमाल की लघुकथा प्रस्तुत की आपने। बड़ी रोचक। रात भर मच्छरों से तंग,सुबह के अख़बार में झाँकते चाय का इंतज़ार करते विश्वकर्मा जी और ब्रेकिंग न्यूज़ सुनाते तिवारी जी दोनों ही किरदार...वाह्ह्ह। अरे ये क्या! लगता है ये सत्ता,विपक्ष और विकास की बातों में घुस जाने को धर्म स्वयं ही छटपटाता रहता है। तभी यहाँ भी चला आया। अभी तो ये बहस और लंबी हो जाती और 7-8 लोग इसमें हिस्सा लेने भी आ जाते वो तो भला हो ऍम्बुलेन्स का जो ध्यान भटका दिया। उफ्फ..क्या हो गया आजकल के युवाओं को? ज़रा सी बात पर...फाँसी!!!
    चलो होरी चाय तो लाया वरना आज बिना चाय के ही विश्वकर्मा जी का दिन बढ़ता।
    वाह्ह्ह!
    आदरणीय सर आपकी कलम कहाँ से इतने रोचक किस्से ले आती है। इतने जीवंत किरदार! निश्चित ही आप आसपास से उठाते हैं और अपने अंदाज़ में उन्हें पन्नों में उतार देते हैं। मुझे सर्वाधिक प्रिय आपकी कई लघुकथाओं में एक यह भी। और जो लोकभाषा का आपने सदुपयोग किया है वह भी सराहनीय। कोटिशः नमन आपको और आपकी कलम को। सुप्रभात 🙏

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीया आँचल जी सटीक समीक्षा हेतु आपका आभार। सादर 

      Delete
  4. वाह! बेहतरीन लघुकथा आदरणीय

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीय अनुराधा जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर  

      Delete
  5. बेहतरीन लघुकथा। लाजवाब भाषा प्रवाह

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीय अनिल जी आपका बहुत-बहुत आभार। सादर 

      Delete
  6. आंचलिक शब्दों से सजी लाजवाब लघुकथा ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीया आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर

      Delete
  7. वाह! रोचक व्यंग्यपूर्ण लघुकथा। सरकार के समर्थक और विरोधियों के बीच विकास पर रोचक चर्चा कराते हुए धर्म की क्षति की चर्चा भी आ गयी इस खोखली पंचायत में। स्थानीय शब्दावली का सुरुचिपूर्ण असरदार प्रयोग लघुकथा को आँचलिकता से जोड़ता है। अंत में लघुकथा मार्मिक मोड़ लेती है जब देश के युवाओं में घोर निराशा के चलते आत्महत्या जैसे निंदनीय क़दम उठाने की ख़बर मिलती है।

    इस विचारणीय लघुकथा के लिए ध्रुव जी को बधाई एवं शुभकामनाएँ।





    ReplyDelete
  8. लोकभाषा में प्रस्तुत बहुत ही सुंदर कथा।

    ReplyDelete
  9. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (13-04-2020) को 'नभ डेरा कोजागर का' (चर्चा अंक 3670) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव



    ReplyDelete
  10. रोचक शैली रैचक कथा ।

    ReplyDelete
  11. मानवीय संवेदनाओं को झझकोरती ये मार्मिक कहानी आपकी लेखन क्षमता का एक सुंदर प्रतीक है प्रिय ध्रुव | एक प्रसंग को अपने शब्दों में जीवंत करने में आप निपुण हैं | आंचलिक संवाद पाठकों को बरबस अपने भावपाश में में बांध लेते हैं | समाज का एक विद्रूप चेहरा एक ये भी है | चिंतन को प्रेरित करती इस लघुकथा के लिए हार्दिक शुभकामनाएं |

    ReplyDelete
  12. वाह!!!!
    कमाल की लघुकथा....
    बहुत ही मर्मस्पर्शी, आँचलिक भाषा के साथ और रोचक बन पड़ी है।

    ReplyDelete
  13. मार्मिक चित्रण

    ReplyDelete
  14. समाज का सटीक चित्रण उकेरा हे आप ने शब्दों से

    ReplyDelete

खोखली पंचायत ( लघुकथा )

खोखली पंचायत ( लघुकथा )  "अ रे ए होरी!" "तनिक एक मस्त चाय तो बना!" "ससुर ई मच्छर!" "रातभर कछुआ...