खोखली पंचायत ( लघुकथा )
"अरे ए होरी!"
"तनिक एक मस्त चाय तो बना!"
"ससुर ई मच्छर!"
"रातभर कछुआछाप जलाये पर भी कान में धुरखेल फाने रहे।"
परमपूजनीय मच्छरों को कोसते हुए लल्लन विश्वकर्मा हिंदी दैनिक पर अपनी सरसरी नज़र दौड़ाते हैं।
"मिर्ज़ापुर में बस खड्डे में पलटने से दर्जनभर घायल!"
"चोरी के संदेह में पीट-पीटकर मार डाला!"
"माननीय सांसद जी ने क़स्बे के टाउनहाल में युवाओं का उत्साह बढ़ाते हुए रेशम की फित्ती काटी!"
"शहरभर में आवारा कुत्तों का आतंक!"
"लहसुन की पत्ती से होगा कैंसर का इलाज!"
"शुक्र पर घर बनायेंगे हम!"
"सरकार की विकास नीतियों का, किसानों और मज़दूरों ने किया जमकर विरोध!"
"आम नागरिक अब कर सकेंगे शौचाल से बिजली पैदा!"
"का दिन आ गया है!"
"जहाँ देखो वहीं बवाल!"
"का होगा ई देश का!"
कहते हुए लल्लन विश्वकर्मा अपनी छेदनुमा बनियान में अपनी उँगली घुसेड़कर अपनी पीठ ख़ुजलाने का भरसक प्रयास करते हैं।
"अरे!"
"तोरा चाय बना कि नहीं।"
"बता नहीं तो चलें।"
"इहाँ हम ठंड से कुल्फ़ी हुए जा रहे हैं!"
"औरे ई ससुर, पता नहीं बीरबल की कउन-सी खिचड़ी पका रहा है।"
कहते हुए लल्लन विश्वकर्मा होरी पर झल्लाते हैं।
"अरे का हुआ!"
"काहे फ़ोकट में तेनुआ रहे हैं लल्लन जी!"
सामने से आते हुए भोला तिवारी, लल्लन विश्वकर्मा की तनिक चुटकी लेते हैं।
"औरे का होगा।"
"रातभर ससुर मच्छरों के अनशन से तनिक सो भी नहीं पाये!"
"औरो ई ससुर होरी!'
"घंटाभर से चाय ही छान रहा है।"
"अरे!"
"इहाँ तुम चाय के लिये बवाल काटे पड़े हो उधर लख़नऊ और दिल्ली में आग लगी जा रही है!"
समाचार चैनलों के सेकेंडहैंड न्यूज़ का, थर्डहैंड फ़ास्टबीट ख़बरों का प्रसारण करते हुए भोला तिवारी।
"अच्छा एक बात बताईए तिवारी जी!"
"का ई ससुर एन.आर.सी औरे सी.ए.ए. वाज़िब है ?"
"या फिर ऐसे ही।"
कहते हुए लल्लन विश्वकर्मा अपने ज्वलंत प्रश्नों का पासा भोला तिवारी के समक्ष फेंकते हैं।
"अरे!"
"काहे नहीं वाज़िब है!"
"सत्तर बरस से देश बर्बाद रहा।"
"अब सुधरे की बारी आई तो ई विपक्ष ससुर।"
"झूठे बवाल काटे पड़ा है।"
"सरकार ने इतने अच्छे-अच्छे काम किये हैं तब भी विपक्ष को उनमें खोट ही दिखता है।"
कहते हुए भोला तिवारी अपने पक्ष को मज़बूती के साथ लल्लन विश्वकर्मा के समक्ष रखते हैं।
"क्यों ?"
"अरे, सत्तर बरस में हम चाँद पर पहुँच गये थे!"
"हमारी इकोनॉमी विदेशों में का टॉमफूस धूम मचाये पड़ा था तब आपको नहीं दिखा।"
"सत्तर बरस में इहाँ कितने ही शोध संस्थान खुले, हॉस्पिटल बने और तो और बाँधों का निर्माण हुआ।"
"का ऊ सब ख़ोखला विकास था!"
सर्दी के कारण बहती हुई अपनी अविरल नाक को अपने शरीर पर लिपटे हुए शॉल से पौंछते हुए लल्लन विश्वकर्मा ने अपनी सरकार का मोर्चा संभाला।
"औरे जो सत्तर बरसों में धर्म की क्षति हुई!"
"उसका क्या!"
भोला तिवारी बहस के बीच में धर्म का डंडा फँसाते हुए लल्लन विश्वकर्मा के समक्ष अपने धार्मिक पक्ष को दो-टूक शब्दों में रखते नज़र आये।
तभी गली से निकलने वाले एम्बुलेंस की तीव्र ध्वनि चाय की दुकान पर खड़े बकबकिये महानुभावों के कानों में पड़ी।
भौंचक्का होते हुए भोला तिवारी,
"अरे होरी!"
"ई हमारे गली में एम्बुलेंस!"
"कौन बीमार हो गया है सुबह-सुबह?"
"अरे!"
"का बात करते हो तिवारी बाबू!"
"आपको नहीं पता?"
"उहे रामनाथ मास्टर का लौंडवा रहा!"
"कल रात उसने फाँसी लगा लिया।"
"मोहल्ले में चर्चा रहा कि सात बरस से उहे दिल्ली में कलेक्टर की तैयारी कर रहा था। सफल न हुआ तो अवसादग्रस्त होकर ससुर फाँसी लगा लिया।"
"बताईए!"
"अब बूढ़े मास्टर जी अपने ज़वान लड़के की लाश स्वयं उठा रहे हैं!"
"लो बाबूजी!"
"तुम्हरी चाय बन गई।"
कहते हुए होरी चायवाला, लल्लन विश्वकर्मा और भोला तिवारी की ओर चाय का कुल्हड़ बढ़ाता है, और दोनों महानुभाव एक-दूसरे की तरफ़ मित्रताभरी नज़रों से देखते हैं!
'एकलव्य'